Sunday, August 24, 2008

राग दीपक उवाच


पूर्णिमा की रात में चाँद बदल जाते हैं !

वक्त के साथ वफादार बदल जाते हैं !!

सोचता हूँ तेरी याद में वक्त बरबाद ना करूँ !

पर सोचते सोचते कमबख्त विचार बदल जाते हैं !!

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एक बदसूरत खातून से एक लफंगा बोला ! क्या बोला ?

लफंगा बोला : कुछ उधार चाहिए ! मिलेगा क्या ?

टालने के लिए खातून बोली - नही मेरे पास कुछ नही है !

लफंगे ने नया दांव खेला, और बोला, अरे तुम चाँद हो !

कुछ भी कैसे नही होगा चाँद के पास ? असंभव है ये !

कहते हैं खातून ने कलेजा निकाल के दे दिया इस लफंगे को !




8 comments:

dpkraj said...

क्या बात भई, मजा आ गया। बहुत बढि़या कविता है। आपको जन्माष्टमी की बधाई
दीपक भारतदीप

ताऊ रामपुरिया said...

कान्हा के जन्म दिवस की बधाई !

महाप्रभु, हम तो समझे थे की आपने ब्लॉग बना
कर इतिश्री कर ली ! पर आप तो छुपे रुस्तम
निकले ! वाह साहब , कमाल की शायरी है !
भई ताऊ आपका मुरीद हूवा ! प्रणाम आपको !
बस ऐसे ही चौके छक्के लगते रहने चाहिए !
और बीच में गायब मत हो जाइयेगा ! :)

Nitish Raj said...

वाह जी कमाल की शायरी की है आपने और निरंतर रहें। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर बधाई।

राज भाटिय़ा said...

आपको जन्माष्टमी पर्व की
बधाई एवं शुभकामनाएं
बहुत ही छुपे शायर निकले,
धन्यवाद

Smart Indian said...

"सोचते सोचते कमबख्त विचार बदल जाते हैं"
अरे वाह, आप तो आ गए जोश में. बधाई! अलबत्ता चाँद बीवी वाली बात कुछ समझ में नहीं आयी.

विक्रांत बेशर्मा said...

सोचता हूँ तेरी याद में वक्त बरबाद ना करूँ !
पर सोचते सोचते कमबख्त विचार बदल जाते हैं !!


बहुत ही बढ़िया कविता है बधाई स्वीकारें !!!!!!!

दीपक "तिवारी साहब" said...

"अलबत्ता चाँद बीवी वाली बात कुछ समझ में नहीं आयी."

Dear Smart Indian
सर जी ये तो जिगर के छाले हैं ! कैसे समझाएं ?
आज तक हम ही नही समझ पाये हैं ! आप कोशीश
कर देखिए ! कभी मूड बन गया तो रूबरू करवाएंगे
इन चाँद बीबी से भी ! खुदा हाफिज दोस्त ! अब
रात के साढ़े दस बज चुके हैं और हमारा निजी
कार्यक्रम का समय हो चुका हैं ! कल मिलेंगे !

इरशाद अली said...

बात आम है लेकिन कहने का तरिका आपका अपना और बहुत नया है।