Sunday, September 28, 2008

जादूगर

जादूगर बोला
आग उगलुन्गा, समुद्र पी जाउंगा
ये तो कुछ भी नही
चार दिन पहले मरे लोगो को
कल के मजमे में जिंदा करूंगा !

एक जवान औरत आई, और बोली
ये क्या गजब कर रहे हैं ?
परसों मेरा पति मरा था
कल मैंने नई शादी की है !
अरे अगर उसको जिंदा कर दोगे
तो अब क्या मैं दो दो पति रक्खूंगी ?

एक नवयुवक आया और बोला,
ऐसा गजब मत करना
मेरा बाप ३ करोड़ छोड़ कर कल ही मरा है !
अगर उसको जिंदा करोगे तो
मेरा करोड़ों का नुक्सान हो जायेगा !
तुम ऐसा करो ये ५० हजार थामो
यहाँ से चलते बनो
और ऐश करो !

Friday, September 19, 2008

चरित्र का दोगलापन

हम ज़रा बाहर चले गए थे इस वजह से आप लोगो से रूबरू नही हो सके !अब लौट आए हैं तो नियमित होने की कोशीश करेंगे ! असल में यार लोगो ने हमारी छवि बिगाड़ कर रख दी है ! यकीन मानिए तिवारी साहब जैसे हैं वैसे हैं !हम आपको जैसे दीख रहे हैं वैसे ही हैं ! हमारे पास दिखावा नही है की हम ऊपर सेहिन्दी दिवस मनाए और उस पर लेक्चर पिलाए और मालुम पड़े सारा कुनबा ही अन्ग्रेज़ी में डूबा पडा हो ! हमको ज्यादा बकबास करने की आदत तो है नही और हम काहे को बताएँगे की ये दिवस मनाने वाले ही ख़ुद अंग्रेजी में डुबे पड़े है ! और ये हमने आपको नही बताया है ! कहीं कोई हमारे सर पर सवार हो जाए !

एक तथाकथित ज्ञानी थे ! कथा प्रवचन कर रहे थे ! वहीं एक भद्र महिला भी उनके प्रवचन सुन रही थी ! थोड़ी देर में उस औरत का छोटा बच्चा जो साथ में था वो जोर जोर से चिल्लाने लगा ! महिला को कथा में रस आ रहा था ! सो बच्चे के रोने पर ध्यान नही दिया ! असल में बच्चे को पेशाब आ रहा था ! जब नाकाबिले बर्दाश्त हो गया तो बच्चा जोर से चिल्ला कर बोला -- मूतना है ॥ मूतना है ...... ! इतना सुनते ही ज्ञानी जी को क्रोध आ गया ! और लगे उस महिला को बुरा भला कहने ! अरे बच्चों को अच्छी तरह बोलना सिखाओ , उनको अच्छे संस्कार दो .. आदि ..आदि.. अब ये कोई बात हुई की पूरी धर्म सभा में इतने जघन्य वचनबोल रहा है !

अब महिला ने पूछा की बाबाजी आप ही बतादो की ॥पेशाब करने की जगह ये क्या बोले ? बाबा बोले -- इसको सिखाओ की जब भी पेशाब करना हो ये बोल दे की गाना गाना है ! महिला बिचारी सीधी साधी थी ! बोली - ठीक बाबाजी ! अब बच्चे को आदत हो गई कीजब भी पेशाब आए वो कहे की गाना गाना है और महिला भी खुश की बाबाजी तो परम ज्ञानी हैं ! बच्चे को कितने सुंदर संस्कार सीखाये हैं ! वाह बाबाजी वाह !

कुछ समय बाद यही ज्ञानी महात्मा इसी महिला के घर आकर ठहरे और वो बच्चा भी थोडा बड़ा हो चुका था ! पर उसमे गाना गाने की वही आदत थी ! दोपहर का समय था !महिला बोली की बाबाजी आप बच्चे को संभालना मैं ज़रा बाजार से शाम की कथा के लिए कुछ सामान ले आती हु !

बच्चा बाबाजी के साथ ही उनकी खटिया पर सो गया ! और बाबा की नींद लग गई !जब बाबाजी गहरी नींद में थे तो बच्चा बोला - बाबाजी गाना गाना है ! अब बाबाजी को यह याद नही रहा की उन्होंने कोई इस तरह की शिक्षा भी दे रखी थी ! उन्होंने सोचा की कोई स्कुल की कविता वविता पढ़ने की इच्छा हो रही होगी ! बाबाजी ने कहा की अभी तू भी सो जा मुझे भी नींद आ रही है ! बच्चे ने जब ज्यादा जिद्द की की नही मुझे तो अब गाना ही है तब बाबाजी बोले यार क्यूँ नींद ख़राब कर रहा है ?उन्होंने सोचा की बच्चा है अब बिना गाये मानेगा नही और अब इसका गाना सुनना ही पडेगा ! सो वो बच्चे को बोले -- तू एक काम कर की तेरा गाना मेरे कान में धीरे धीरे सूना दे ! बच्चा परेशान तो था ही ! उठ कर जो कान में गाना सुनाया तो बाबाजी का तो सारा ज्ञान निकल गया ! तो साहब हम इस तरह उधार जीवन नही जीते ! तिवारी साहब तो जो हैं वो हैं ! कोई झूँठ सच नही ! हमारे अन्दर इस तरह के संस्कार नही है !

दोस्त ने दिल का हाल बताना छोड़ दिया !
हमने भी अब गहराई में जाना छोड़ दिया !!
जब उसे हमारी कमी का एहसास नही !
तो हमने भी उसे याद दिलाना छोड़ दिया !!

Tuesday, September 9, 2008

" तिवारी साहब" की चवन्नियां

तिवारी साहब पन्डताइन को लिवाने ससुराल गए थे !
वहाँ इस बार बड़ा आनंद दायक माहौल था ! और
वहां पर शेरो शायरी का कुछ अच्छा माहौल जम गया था !
आप भी तिवारी साहब की वहा पर सुनी सुनाई चवन्नी
छाप शायरी की दो चवन्नियों का लुत्फ़ उठाइये !

पहली चवन्नी :-

मैं सूंघ लेता अगर तुम खुशबू होती !
जवाब देता अगर तुम सवाल होती !
सब जानते हैं की मैं कभी पीता नही ?
फ़िर भी पी लेता अगर तुम शराब होती !

दूसरी चवन्नी :-

वो पास रहते तो हम बात कर लेते !
वो यहीं रहते तो हम प्यार कर लेते !
क्या परेशानियां रही, जो वो चले गए ?
कारण तो बताते, हम इंतजार कर लेते !

पुनश्च:-

( हमारे जाने के बाद ताउजी ने हमारे बारे में
बहुत उलटा सीधा लिखा है ! और सुना है ताऊ
आजकल कटोरा फेंक कर, बैंक के बाहर, भुट्टे
मूंगफली सेक कर बेच रहे है ! ठीक है वो चाहे
जो लिख सकते हैं तो "तिवारी साहब" भी अगली
पोस्ट में इसका जवाब देंगे !
तब तक " तिवारी साहब"की सलाम लीजिये )

Tuesday, September 2, 2008

थम थारी अठ्ठन्नी थारै धोरै राखो !

आज आपको मैं एक असली ताऊ की कहानी सुनाता हूँ ! दोस्तों, इस सच्ची घटना का सम्बन्ध हमारे ताऊ रामपुरिया जी से नही है ! कभी वो नाराज हो जाएँ ! और वो हमेशा अपनीगलती की वजह से ताई से "मेड इन जर्मन" लट्ठ से पिटते रहते हैं ! और नाम इसमे बदनाम होता है पहला तो राजभाटिया जी का और दूसरा ले दे कर मेरा ! जबकि ताऊ काहम दोनों से बड़ा शुभचिंतक कोई नही है !


एक ताऊ उस समय भीख माँगने का काम करता था ! पढा लिखा तो था नही , सो इससे अच्छा धंधा ताऊ को और क्या मिलता !


पहले ताऊ ने एक जगह किराए पर एक मस्जिद के बाहर ली !और कटोरा हाथ में लेके अपनी दूकान लगाली ! पर वहाँ भी दूकान चली नही ! सिर्फ़ किराया चुकाने जितना पैसा कटोरे में आता था !


फ़िर ताऊ ने वहाँ छोड़ कर मन्दिर , गुरुद्वारे और चर्च सब जगह अपनी दूकान लगाई ! पर कहीं भी बात बनी नही ! और एक दिनताऊ उदास उदास सा मेरे पास आया और बोला -- यार तिवारी साहब क्या बताऊँ ? बहुत घाटा हो गया !


मैंने कहा -- यार ताऊ क्यों बेवकूफ बना रहा है ? तेरा भीख माँगने का धंधा है, और इस धंधे में घाटे का क्या काम ?ताऊ बोला - अरे बावली बूच ! तन्नै बेरा कोनी के ? अरे आजकल भीख माँगने के लिए भी चार-पाँच हजार रुपये तो ठीये पर बैठने का किराया भाई लोगो को देना पङता है ! और आज तक भी इतनीभीख मिली नही ! पता नही पहले तो इन जगहों पर सुना था , अच्छी मजदूरी मिला करती थी ! पर आज कल लोग यहाँ भी कंजूसी दिखाने लग गए !


मैंने कहा -- ताऊ तू एक काम कर ! मेरे साथ चल !
और मेरी तरह मशीन पार्ट की दुकान लगाले !
ताऊ बोला -- भाई यो म्हारै बस की बात नही सै !
फ़िर मैंने कहा -- ताऊ एक फुल प्रूफ आइडिया आया सै म्हारै दिमाग मैं !
ताऊ बोला -- जल्दी बताओ तिवारी साहब !
मैंने कहा -- ताऊ तुम आज मेरे साथ मयखाने ( बार) हमारी मंडलीके साथ चलना !
ताऊ बोला -- अरे तिवारी साहब , मैं दारु वारु नही पीया करता !मैं वहाँ क्या करूंगा ?
तुमको ही मुबारक हो !
मैं बोला - अर् ताऊ , बात तो पुरी सुना कर ! दारु तेरे को कौन पिलाता है ?
तू तो एक काम करना की आज तेरा कटोरा लेके हमारे साथ ही चलना !

हम तेरे को बार से थोडा पहले ही कार से उतार देंगे और दारुखाने वाला
हमारा दोस्त है ! वो किराया भी नही लेगा ! तू वहाँ भीख माँगने का धंधा शुरू कर दे !
ताऊ बोला - तेरी अक्ल ख़राब हो री सै के तिवारी ?


( आज तक हमको दुसरे तो क्या ? ख़ुद हमने अपने आपको
तिवारी साहब के अलावा कह कर नही बुलाया !
दुसरे की तो हमारे
सामने औकात ही क्या ? पर क्या करे ? ताऊ की दोस्ती जी का जंजाल !
इस ताऊ को धंधा भी ये पसंद आया ? पर क्या करे ? दोस्ती है तो भुगतो )


मैंने कहा -- देख ताऊ ! पहले तो अपनी जबान संभाल ! और फ़िर बात सुन !
हमको तिवारी नही तिवारी साहब कहके बुलाते हैं !
ताऊ बोला -- देखो जी तिवारी साहब ! साहब और जी कह कर तो हम
अपने बाबू को भी नही बुलाते ! सो थम थारी अठ्ठन्नी थारै धोरै राखो !
अब मैंने सोचा की ताऊ है कुछ उज्जड टाइप का ! इसका दिमाग फ़िर गया
तो मुश्किल ! और ताऊ से बिना मिले हम में से किसी को चैन नही !
सो ताऊ को नाराज भी नही करना था ! बस ये ही एक ताऊ है
जो हमको कभी कभी तिवारी कह लेता है !


सो हमने किसी तरह ताऊ को समझा बुझाके दारुखाने के बाहर कटोरा
दे के बैठा दिया ! अब जो भी शराबी पी के निकलता वो ही झूमता हुवा
आता और के ताऊ कटोरे में जेब के नोट पटक देता !
भाई ताऊ का तो कटोरा सिक्कों से नही, बल्कि नोटों से भर गया !


फ़िर हम भी पी पा कर टुन्न हो गए तो बाहर आए और ताऊ को इशारा
किया की अब उठ जा ! और चुप चाप आगे जा के खडा हो जा !
हम कार लेके आते हैं ! अब बहुत हो गया ! घर भी चलना है !


ताऊ बड़ बड़ा रहा था -- वाह परमात्मा ! आज तो बड़ी तगडी मजदूरी
करवाई तूने ! पर ये बात पहले क्यूँ नही बताई ? तू रहता तो यहाँ
शराब खाने में है ! और पता तूने मन्दिर का दे रखा है !
वाह रे भगवान !


( इस लेख में प्रयोग हुए हरयाणवी शब्दों को प्रयोग करने में ताऊ रामपुरिया जी ने मेरी पूर्ण रूपेण सहायता की है ! उनको तहे दिल से तिवारी साहब धन्यवाद देते हैं )