Thursday, August 21, 2008

आदाब अर्ज है !

उसने दी जिन्दगी तो जी मैंने !

उसने लिखा पी, तो पी मैंने !!

गर मैं ना पीता तो ,

उसका लिखा ग़लत ना हो जाता !

उसके लिखे को निभाया ,


क्या खता की मैंने ?

3 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

वाह वाह ! पीते रहिये तिवारी जी !
और उसका नाम भी लेते रहिये !
बढिया बहाना है ! भाभीजी को पता
है या ख़बर करनी पडेगी !

राज भाटिय़ा said...

दीपक बाबू, भाई उन्होने तो चाय पीने के लिये कहा था , ओर आप तो देसी दारु ले कर बेठ गये,लेकिन आप की कविता बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

Anonymous said...

दीपक जी, आपतो पूरे पियक्कड़ दिख रहे हैं. कभी चंडीगढ़ आना हो तो बैठेंगे.
मुकुंद
09914401230