आज आपको मैं एक असली ताऊ की कहानी सुनाता हूँ ! दोस्तों, इस सच्ची घटना का सम्बन्ध हमारे ताऊ रामपुरिया जी से नही है ! कभी वो नाराज हो जाएँ ! और वो हमेशा अपनीगलती की वजह से ताई से "मेड इन जर्मन" लट्ठ से पिटते रहते हैं ! और नाम इसमे बदनाम होता है पहला तो राजभाटिया जी का और दूसरा ले दे कर मेरा ! जबकि ताऊ काहम दोनों से बड़ा शुभचिंतक कोई नही है !
एक ताऊ उस समय भीख माँगने का काम करता था ! पढा लिखा तो था नही , सो इससे अच्छा धंधा ताऊ को और क्या मिलता !
पहले ताऊ ने एक जगह किराए पर एक मस्जिद के बाहर ली !और कटोरा हाथ में लेके अपनी दूकान लगाली ! पर वहाँ भी दूकान चली नही ! सिर्फ़ किराया चुकाने जितना पैसा कटोरे में आता था !
फ़िर ताऊ ने वहाँ छोड़ कर मन्दिर , गुरुद्वारे और चर्च सब जगह अपनी दूकान लगाई ! पर कहीं भी बात बनी नही ! और एक दिनताऊ उदास उदास सा मेरे पास आया और बोला -- यार तिवारी साहब क्या बताऊँ ? बहुत घाटा हो गया !
मैंने कहा -- यार ताऊ क्यों बेवकूफ बना रहा है ? तेरा भीख माँगने का धंधा है, और इस धंधे में घाटे का क्या काम ?ताऊ बोला - अरे बावली बूच ! तन्नै बेरा कोनी के ? अरे आजकल भीख माँगने के लिए भी चार-पाँच हजार रुपये तो ठीये पर बैठने का किराया भाई लोगो को देना पङता है ! और आज तक भी इतनीभीख मिली नही ! पता नही पहले तो इन जगहों पर सुना था , अच्छी मजदूरी मिला करती थी ! पर आज कल लोग यहाँ भी कंजूसी दिखाने लग गए !
मैंने कहा -- ताऊ तू एक काम कर ! मेरे साथ चल !
और मेरी तरह मशीन पार्ट की दुकान लगाले !
ताऊ बोला -- भाई यो म्हारै बस की बात नही सै !
फ़िर मैंने कहा -- ताऊ एक फुल प्रूफ आइडिया आया सै म्हारै दिमाग मैं !
ताऊ बोला -- जल्दी बताओ तिवारी साहब !
मैंने कहा -- ताऊ तुम आज मेरे साथ मयखाने ( बार) हमारी मंडलीके साथ चलना !
ताऊ बोला -- अरे तिवारी साहब , मैं दारु वारु नही पीया करता !मैं वहाँ क्या करूंगा ?
तुमको ही मुबारक हो !
मैं बोला - अर् ताऊ , बात तो पुरी सुना कर ! दारु तेरे को कौन पिलाता है ?
तू तो एक काम करना की आज तेरा कटोरा लेके हमारे साथ ही चलना !
हम तेरे को बार से थोडा पहले ही कार से उतार देंगे और दारुखाने वाला
हमारा दोस्त है ! वो किराया भी नही लेगा ! तू वहाँ भीख माँगने का धंधा शुरू कर दे !
ताऊ बोला - तेरी अक्ल ख़राब हो री सै के तिवारी ?
( आज तक हमको दुसरे तो क्या ? ख़ुद हमने अपने आपको
तिवारी साहब के अलावा कह कर नही बुलाया ! दुसरे की तो हमारे
सामने औकात ही क्या ? पर क्या करे ? ताऊ की दोस्ती जी का जंजाल !
इस ताऊ को धंधा भी ये पसंद आया ? पर क्या करे ? दोस्ती है तो भुगतो )
मैंने कहा -- देख ताऊ ! पहले तो अपनी जबान संभाल ! और फ़िर बात सुन !
हमको तिवारी नही तिवारी साहब कहके बुलाते हैं !
ताऊ बोला -- देखो जी तिवारी साहब ! साहब और जी कह कर तो हम
अपने बाबू को भी नही बुलाते ! सो थम थारी अठ्ठन्नी थारै धोरै राखो !
अब मैंने सोचा की ताऊ है कुछ उज्जड टाइप का ! इसका दिमाग फ़िर गया
तो मुश्किल ! और ताऊ से बिना मिले हम में से किसी को चैन नही !
सो ताऊ को नाराज भी नही करना था ! बस ये ही एक ताऊ है
जो हमको कभी कभी तिवारी कह लेता है !
सो हमने किसी तरह ताऊ को समझा बुझाके दारुखाने के बाहर कटोरा
दे के बैठा दिया ! अब जो भी शराबी पी के निकलता वो ही झूमता हुवा
आता और के ताऊ कटोरे में जेब के नोट पटक देता !
भाई ताऊ का तो कटोरा सिक्कों से नही, बल्कि नोटों से भर गया !
फ़िर हम भी पी पा कर टुन्न हो गए तो बाहर आए और ताऊ को इशारा
किया की अब उठ जा ! और चुप चाप आगे जा के खडा हो जा !
हम कार लेके आते हैं ! अब बहुत हो गया ! घर भी चलना है !
ताऊ बड़ बड़ा रहा था -- वाह परमात्मा ! आज तो बड़ी तगडी मजदूरी
करवाई तूने ! पर ये बात पहले क्यूँ नही बताई ? तू रहता तो यहाँ
शराब खाने में है ! और पता तूने मन्दिर का दे रखा है ! वाह रे भगवान !
( इस लेख में प्रयोग हुए हरयाणवी शब्दों को प्रयोग करने में ताऊ रामपुरिया जी ने मेरी पूर्ण रूपेण सहायता की है ! उनको तहे दिल से तिवारी साहब धन्यवाद देते हैं )
13 comments:
तिवारी साहब,
बहुत ही रोचक पोस्ट है ....आप हमारे जगत ताऊ का कॉम्पिटिशन बढ़ा रहे हैं!!!!!!!पोस्ट बहुत ही शानदार लगी मुझे !!!!!!!!!
तिवारी साहिब जी. इसी लिये तो मे मन्दिर नही जाता,क्यो कि मुझे पता हे ,भगवान मिंया वहा नही रहते, ओर ना ही मेने कभी पेसे ही चढाये हे, ऎसी जगह पर...... मेरे को ताऊ जी ने पहले ही बता दिया था.
बहुत बहुत धन्यवाद तिवारी साहिब जी , आप ने बहौत ग्याण की बात बातई
वाह भाई तिवारी साहब ! आप पक्के से हमारी
दूकान के पटिये उल्लाल करवाओगे ! बहुत बढिया
मैटर उठा कर लाये हो ! लगता है की आपकी
कलाली के सामने ये ही सब कुछ होता है ! :)
बहुत गजब का लिखा ! बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
पर निरंतर लिखिए ! आप पी पा कर गायब हो जाते हैं !:)
ये अच्छी बात नही है ! :)
आपको एक बात बताऊ की तिवारी साहब तो मयखाने से
पी कर औंधे पड़े थे ! और आज कल मैं इनके यहीं टिका
हूँ ! ये सारा लेख इन्होने शाम के खाने के बदले लिख
वाया है ! और अब दुसरे भी काम करवाने की इच्छा है
इनकी ! कल रात ही कह रहे थे - भूत नाथ कहीं से जाकर
एक बोतल दारु उठा लाओ ! अब बोलो मैं ये काम थोड़ी
करूंगा ! मौका देख कर यहाँ से निकल भागूंगा !
rochak hai or andaaj bhi dilchasp hai
अरे रे, तभी तो मैं रोज खोजूं कहां चले गये भगवान मंदिर से ।
तिवारी साहब ताउ जी की नैया पार लगाने के लिये आभार, गुरू गोबिंद दोउ खडे वाला काम किया है आपने, पांव तो आपके ही लागों हैं ।
तिवारी साहब, सही मजे ले रहे है मयखाने के. पंडिताइन भाभी को ख़बर होने दो ज़रा.
ताऊ की बात बिल्कुल सही है - इसीलिये ब्लॉग-जगत में भगवान् पे काफी चर्चा हो रही है.
Keep it up. Enjoy life and help Tau!
भई वाह तिवारी साहब..
क्या रास्ता दिखाया ताऊ को...?
गजब...
बहुत बढिया तिवारी महाराज ! तुम दोनों गुरु चेले
बहुत अच्छे जा रहे हो ! कौन गुरु और कौन चेला ?
अभी तो लाख टके का सवाल यही है ! धन्य हो
आप ! आपको प्रणाम करते हैं !
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Regards
मजा आ गया कहानी पढ़कर।
तिवारी साहब धन्यवाद।
खुशी हुई आपसे मिलकर। पोस्ट पढ़कर मजा आया। हम आते रहेंगे आप से मिलने।
तिवारी साहेब पहली बार आप के ब्लॉग पे आया...सारी पोस्ट पढ़ डालीं और घणा मजा आया....
नीरज
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