Thursday, November 20, 2008

ताई ने किया अर्थ का अनर्थ

बात पुरानी है ! उस समय ताऊ और ताई की शादी हुई ही थी ! 
शादी के कुछ दिन बाद ताऊ तो कलकता चला गया ! 
और ताई रह गई गाँव  में ! अब एक दिन ताई ने एक पत्र ताऊ को लिखा ! 


आप तो ताऊ को जानते ही हो ! ताऊ ख़ुद अंगूठा छाप है ! इसीलिए चोरी 
डकैती और लूट्मारी के धंधो में लगा है ! 
सूना है आजकल चाँद बेच कर खाने की जुगाड़ में है ! 
यमराज जी चाँद ताऊ के हवाले कर गए हैं !  


ताऊ अब ऐसा है तो ताई भी उससे दो हाथ आगे है ! 
बस किसी तरह जोड़ कर  अक्षर लिख लेती है ! 
शब्द कहाँ लगाना, कोमा,  पूर्णविराम जहाँ इच्छा हो वहीं लगाती है ! 
आप भी ताई का पत्र ताऊ के नाम की झलक देखिये !


मेरे प्रिय जीवन साथी मेरे चरणों में आपका प्रणाम ! 

आपने अभी तक चिट्ठी नही लिखी मेरी सहेली को !  

नौकरी मिल गई है गाय ने !  

बच्छडा दिया है दादाजी ने !  

शराब शुरू करदी मैंने !  

तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नही आए कुत्ते के बच्चे !  

भेडिया खा गई दो महीने का राशन !  

छुट्टी पर आते वक्त ले आना एक खूबसूरत औरत !  

मेरी सहेली बन गई है ! 

और इस वक्त टी.वी. पर गाना गा रही है हमारी बकरी !  

बेच दी गई है तुम्हारी माँ !  

तुमको याद कर रही है एक पडोसन !  

हमें बहुत तंग करती है तुम्हारी बहन !  

सिरदर्द से लेटी है तुम्हारी पत्नी !
 

अब अगर ताई पढी लिखी होती और सही कोमा एवं पूर्णविराम लगाती तो असल बात यह थी ! 


मेरे प्रिय जीवन साथी के चरणों में मेरा प्रणाम  ! 
आपने अभी तक चिट्ठी नही लिखी ! मेरी सहेली को  नौकरी मिल गई है !  
गाय ने  बच्छडा दिया है !  दादाजी ने शराब शुरू करदी !  
मैंने  तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नही आए ! कुत्ते के बच्चे  भेडिया खा गई !  
दो महीने का राशन  छुट्टी पर आते वक्त ले आना !  
एक खूबसूरत औरत  मेरी सहेली बन गई है ! 
और इस वक्त टी.वी. पर गाना गा रही है ! हमारी बकरी  बेच दी गई है !  
तुम्हारी माँ  तुमको याद कर रही है !  एक पडोसन  हमें बहुत तंग करती है !  
तुम्हारी बहन  सिरदर्द से लेटी है ! 

तुम्हारी पत्नी !
 

हम बिल्कुल भी नही बताएँगे की ये कौन से ताई और ताऊ की कहानी है ! 
आपको जो समझना हो आप समझ लीजिये ! 

Saturday, November 15, 2008

तीन सिद्ध ताऊ : गहन तपस्या में लीन

साथियो, मित्रो, भाईयो ,बहनों और सारे वोटरों को तिवारीसाहब का नमस्कार ! 
हमको अफ़सोस इस बात का है की हमको उपरोक्त भाषण देने का सौभाग्य इस बार नही मिला ! कारण हमारी पार्टी ने हमें टिकट देने के काबिल ही नही समझा !  फ़िर भी हमारी व्यस्तताए वैसी ही हैं जैसी की ख़ुद चुनाव लड़ने में होती है ! कारण की पार्टी का काम करना पड़ता है ! हमारी व्यस्तताए अभी बहुत ज्यादा हैं ! और १०/११ दिन की बात है फ़िर आपसे जमकर बात चित होगी ! 

अब यहाँ आगये हैं तो कुछ गप शप हो जाए तो अच्छा रहेगा ! 

एक बार ताऊ २५ वीं मंजिल पर बैठा था ! एक मित्र ने बताया की आपकी पोती  का एक्सीडेंट हो गया है तो ताऊ हडबडी में खिड़की से छलांग लगा देते हैं ! २० मंजिल तक नीचे गिरे तो याद आया की उनके तो कोई पोती ही नही है ! फ़िर दसवीं  मंजिल तक आते  आते उनको याद आया की  उनकी तो अभी तक शादी ही नही हुई ! और जब जमीन पर गिर कर उनकी हड्डी पसली एक हो गई तब याद आया की उनका नाम तो ताऊ ही नही था ! अब ये आप अंदाज लगाओ की इनमे ये दोनों ताऊ कौन कौन थे ? हम नही बताएँगे !


उपरोक्त घटना के बाद ताऊ रामपुरिया , राज भाटिया जी और योगीन्द्र मोदगिल  जी यानी तीनो हरयाणवी अपने घरो से लड़ झगड़ कर तपस्या करने हिमालय के पहाडो  में चले गए ! अब आप जानते ही हो की तपस्या और ताउओ का क्या सम्बन्ध ? तो कुछ घर की याद आने लग गई ! उस जंगल में रास्ता भी मुश्किल सो वापस भी नही जा सकते थे !
 
 
राज भाटिया जी और योगीन्द्र मोदगिल जी  ज्यादा परेशान थे वापस घर जाने के लिए ! और ताऊ रामपुरिया को तो मुंह मांगी मुराद मिल गई थी ! वो जंगल में बहुत प्रशन्न था ! कारण एक तो ताई से लट्ठ खाने का डर खत्म और सुल्फे गांजे चिलम का पक्का इंतजाम वहाँ था ही  ! सो वो किसी कीमत पर वापस नही जाना चाहता था ! तो इनके दो गुट बन गए थे !
 

एक दिन इनकी तपस्या से भगवान् भोलेनाथ प्रशन्न होके प्रकट हो गए !

और उनसे बोले - वत्स वरदान मांगो ! 
भाटिया जी बोले - भोले नाथ , मुझे कुछ नही चाहिए बस मेरे बीबी बच्चो के पास मुझे वापस भेज दो !  
भोलेनाथ - तथास्तु ! और भाटिया जी जर्मनी पहुँच गए !
योगीन्द्र मोदगिल जी ने भी यही वरदान माँगा और उनको भी भोले नाथ ने पानीपत भेज दिया ! 

अब ताऊ रामपुरिया सोचने लगा की मैं क्या करूँ ? अब अकेला कैसे रहूंगा ? 
और घर वापस गया तो ताई मारेगी लट्ठ से ! इस तरह संन्यास लेकर घर लौटने से जग हंसाई होगी सो अलग ! बड़ी परेशानी में फंस लिया ताऊ तो ! 

अब भोले नाथ बोले - ताऊ फ़टाफ़ट मांग वरदान ! हमारे पास समय बहुत कम है ! 
ताऊ - भोले नाथ जी आप तो वरदान स्वरुप राज भाटिया जी और योगीन्द्र मोदगिल जी को वापस युहीं बुलवा दो ! 

और भोले नाथ - तथास्तु कह कर अंतर्धान हो गए ! और इब फ़िर से तीनो ताऊ उसी गुफा में तपस्या कर रहे हैं ! आपको भी इनसे कुछ काम हो तो इन तीनो सिद्ध पुरुषों का पता हमारे पास है ! आप को भी अवश्य लाभ होगा ! आख़िर सिद्ध ताऊ हैं तीनो ! अब बस संसार के दुःख कष्ट मिटाने का ही कार्य करते हैं !