Monday, August 25, 2008

शहर से आए हो क्या ?

इसी साल जयपुर जाने का काम पडा ! रास्ते में एक जगह
उपरोक्त बोर्ड लगा देख कर उत्सुकता वश रुक कर देखा की
यह भयंकर ठंडी बीयर क्या होती है ? और ऐसी गरमी में
तिवारी जी को अगर ठंडी बीयर मिल जाए तो क्या कहने ?

अत: वहीं ढाबे पर हमने गाडी लगा कर पता किया ! गरमी
बहुत ज्यादा थी सो भयंकर ठंडी बीयर का सोच सोच कर ही
आत्मा तृप्त होती जा रही थी !

अन्दर ढाबे में खटिया पे बैठे और इतनी देर में आर्डर, जी
हाँ , आर्डर मास्टर , वेटर को वहाँ बैठे सभी ड्राइवर लोग इसी
नाम से बुला रहे थे ! हमने उससे कहा मास्टर जी आप चार
भयंकरतम ठंडी बीयर ला दो ! इस गरमी में जान निकल रही
है ! जल्दी करो !

अब आर्डर मास्टर चोंका ! बोला भयंकरतम ठंडी बीयर से
आपका क्या मतलब है ? हमने कहा - भाई बाहर सड़क
के बीचों बीच आपने बोर्ड लगा रखा है ! आर्डर मास्टर
मुस्कुराया और बोला - बाबूजी आप शहर से आए हो क्या ?
आपको इतना भी नही दीखता की यहाँ बिजली का कोई
इंतजाम नही है ! फ़िर भयंकर तो छोडो सिर्फ़ ठंडी बीयर
भी कहाँ से आयेगी ?

हमने पूछा - की भाई फ़िर बोर्ड पर ठीक से लिखवा दो !
वो - बोला , ये तो ग्राहक को फंसाकर यहाँ रुकवाने के
लिए लिखा रखा है ! पहले ये ढाबा भी नही चलता था !
तुम्हारी तरह के कोई बाबूजी ने यह सलाह हमारे सेठ
को दी थी , तबसे ढाबा चल, क्या दौड़ रहा है !

तभी पास की खटिया पर बैठे दो ड्राइवर हमारी
बातों का मजा ले रहे थे ! उनमे से एक बोला - बाबूजी
ये ग़लत क्या कहता है ! अरे बीयर की बोतल को जग
में खाली करलो और जितनी भयंकर ठंडी करनी हो
उतनी बर्फ उसमे पटक लो ! ये लो होगई भयंकर
ठंडी बीयर ! और मजे लो , जो इस जंगल में ऎसी
भयंकरतम ठंडी बीयर मिल गई ! और वो ड्राइवर
ये शेर .. या क्या है , हमको सुनाते हुए गुनगुना उठा !

मांगता हूँ तो देती नही , जवाब मेरी बात का !
देती है तो खडा हो जाता है , रोम रोम जज्बात का !!

और आर्डर मास्टर को खाना जल्दी लगाने के लिए
कुछ इस तरह आवाज लगा उठा -- छेती कर ओये
........ के टके ..... !

Sunday, August 24, 2008

राग दीपक उवाच


पूर्णिमा की रात में चाँद बदल जाते हैं !

वक्त के साथ वफादार बदल जाते हैं !!

सोचता हूँ तेरी याद में वक्त बरबाद ना करूँ !

पर सोचते सोचते कमबख्त विचार बदल जाते हैं !!

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एक बदसूरत खातून से एक लफंगा बोला ! क्या बोला ?

लफंगा बोला : कुछ उधार चाहिए ! मिलेगा क्या ?

टालने के लिए खातून बोली - नही मेरे पास कुछ नही है !

लफंगे ने नया दांव खेला, और बोला, अरे तुम चाँद हो !

कुछ भी कैसे नही होगा चाँद के पास ? असंभव है ये !

कहते हैं खातून ने कलेजा निकाल के दे दिया इस लफंगे को !




Thursday, August 21, 2008

आदाब अर्ज है !

उसने दी जिन्दगी तो जी मैंने !

उसने लिखा पी, तो पी मैंने !!

गर मैं ना पीता तो ,

उसका लिखा ग़लत ना हो जाता !

उसके लिखे को निभाया ,


क्या खता की मैंने ?